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ग़ज़ल
कोई है जो शिकस्त-ए-ज़ब्त-ए-ग़म होने नहीं देता
मैं रोना चाहता हूँ और वो रोने नहीं देता
पीरज़ादा क़ासीम
ग़ज़ल
मुझे जब शान-ए-ज़ब्त-ए-ग़म दिखाने का ख़याल आया
वुफ़ूर-ए-दर्द में भी मुस्कुराने का ख़याल आया