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ग़ज़ल
जब से पहना है नए मौसम ने ज़ख़्मों का लिबास
फूल से खिलने लगे हैं दीदा-ए-ख़ूँ-नाब में
प्रेम वारबर्टनी
ग़ज़ल
चश्म-ए-अंजुम पे नहीं अब्र से वो रोज़-ए-सियाह
जो मिरे दीदा-ए-ख़ूँ-नाब-चकाँ पर आया