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नज़्म
इस बस्ती के इक कूचे में
'कुछ और कहो तो सुनता हूँ इस बाब में कुछ मत फ़रमाना'
इस बस्ती के इक कूचे में इक 'इंशा' नाम का दीवाना
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
किताबों में धरा है क्या बहुत लिख लिख के धो डालीं
हमारे दिल पे नक़्श-ए-कल-हजर है तेरा फ़रमाना
बहादुर शाह ज़फ़र
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नज़्म
पहला पत्थर
सबा जो राह में दुश्मन मिलें तो फ़रमाना
कि ये तो कुछ न किया हो सके तो और करे
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
नया आहंग
नया आहंग होता है मुरत्तब लफ़्ज़ ओ मअनी का
मिरे हक़ में अभी कुछ फ़ैसला सादिर न फ़रमाना
अख़्तरुल ईमान
ग़ज़ल
हमारे घर से जाना मुस्कुरा कर फिर ये फ़रमाना
तुम्हें मेरी क़सम देखो मिरी रफ़्तार कैसी है
हसन बरेलवी
ग़ज़ल
शैख़ जी आया न वा'दे पर तो अब 'आसिफ़' का यार
तुम तो ख़ुश होगे तुम्हारा ही जो फ़रमाना हुआ
आसिफ़ुद्दौला
नज़्म
हिकमत का बुत-ख़ाना
शराब-ए-शोर से लबरेज़ है दुनिया का पैमाना
हरीफ़-ए-दीन-ओ-दानिश है मज़ाक़-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना
बेबाक भोजपुरी
ग़ज़ल
वा अगर बाब-ए-मुरव्वत को नहीं है होना
आज ही कह दें जो कल आप को फ़रमाना है
सय्यद नवाब हैदर नक़वी राही
ग़ज़ल
याद फ़रमाना था मुझ को भी दम-ए-गुल-गश्त-ए-बाग़
साथ चलने को जिलौ मैं क्या सबा थी मैं न था