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शेर
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
विरासत में भला लेगी भी क्या नस्ल-ए-फ़र-ओ-माया
ग़ज़ल में भी सियासत है ज़रूरत से ज़ियादा ही
आदित्य श्रीवास्तव शफ़क़
ग़ज़ल
टाँके क्या जैब के फिर बाद-ए-रफ़ू टूट गए
हो के नाख़ुन कभी सीने में फ़रो टूट गए
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
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ग़ज़ल
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
न जल के ख़ाक हो जब तक कि मिस्ल-ए-परवाना
हो तैश दिल का हमारे फ़रो तो क्यूँ-कर हो
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
सुकूत-ए-लब का वो सबब हैं सिसकियाँ वो हिचकियाँ
निगाह-ए-इश्क़ से फ़रो वो हादिसा नहीं हुआ
अबू लेवीज़ा अली
कुल्लियात
लाते नहीं हो मुतलक़ सर तुम फ़रो ख़ुदा से
ये नाज़ ख़ूब-रूयाँ बंदे हैं हम तुम्हारे
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
नियाज़-ओ-अर्ज़-ए-सुख़न से कहाँ फ़रो होवे
ग़ुरूर-ओ-नाज़ कि है कज-कुलाहियों जैसा
आफ़ताब इक़बाल शमीम
कुल्लियात
शुक्र-ए-ख़ुदा कि सर न फ़रो लाए हम कहीं
क्या जानें सज्दा कहते हैं किस को सलाम क्या