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शेर
लाग़र ऐसा वहशत-ए-इश्क़-ए-लब-ए-शीरीं में हूँ
च्यूंटियाँ ले जाती हैं दाना मिरी ज़ंजीर का
असद अली ख़ान क़लक़
कुल्लियात
ऐ ‘इश्क़-ए-बे-मुहाबा तू ने तो जान मारे
टुक हुस्न की तरफ़ हो क्या क्या जवान मारे
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
कारज़ार-ए-इश्क़-ओ-सर-मस्ती में नुसरत-याब हों
वो जुनूनी दार तक जाने को जो बेताब हूँ