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गीत
बरसात भी आ कर चली गई बादल भी गरज कर बरस गए
अरे उस की एक झलक को ऐ हुस्न के मालिक तरस गए
मजरूह सुल्तानपुरी
नज़्म
बरसात की बहारें
गुल फूल झाड़-बूटे कर अपनी धज रहे हैं
बिजली चमक रही है बादल गरज रहे हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
रात और रेल
एक सरकश फ़ौज की सूरत अलम खोले हुए
एक तूफ़ानी गरज के साथ डराती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
शाम-ए-अयादत
अभी घन-गरज सुनाई देगी इंक़लाब की
अभी तो गोश-बर-सदा है बज़्म आफ़्ताब की
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
अँधेरी रात का मुसाफ़िर
घटा की घन-गरज से क़ल्ब-ए-गीती काँप जाता है
मगर मैं अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ता ही जाता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
अब की बारिश में न रह जाए किसी के दिल में मैल
सब की गगरी धो के भर दे ऐ घटा बरसात की