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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
निसार मैं तेरी गलियों के
निसार मैं तिरी गलियों के ऐ वतन कि जहाँ
चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
जिस धूप की दिल में ठंडक थी वो धूप उसी के साथ गई
इन जलती बलती गलियों में अब ख़ाक उड़ाऊँ किस के लिए
नासिर काज़मी
नज़्म
सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47)
अभी गिरानी-ए-शब में कमी नहीं आई
नजात-ए-दीदा-ओ-दिल की घड़ी नहीं आई