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नज़्म
निसार मैं तेरी गलियों के
ग़रज़ तसव्वुर-ए-शाम-ओ-सहर में जीते हैं
गिरफ़्त-ए-साया-ए-दीवार-ओ-दर में जीते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
किसी को उदास देख कर
ये बात बात पे क़ानून ओ ज़ाब्ते की गिरफ़्त
ये ज़िल्लतें ये ग़ुलामी ये दौर-ए-मजबूरी
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
वो शाख़-ए-महताब कट चुकी है
कि जिस पे तुम ने गिरफ़्त-ए-वा'दा की रेशमी शाल के सितारे सजा दिए थे
बहुत दिनों से
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
है वो तो हद्द-ए-गिरफ़्त-ए-ख़याल से भी परे
ये सोच कर ही ख़याल उस का अपने ध्यान में ला
अकबर हैदराबादी
ग़ज़ल
ये किस ख़ता की सज़ा में हैं दोहरी ज़ंजीरें
गिरफ़्त मौत की है ज़िंदगी की क़ैद में हूँ