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ग़ज़ल
मिरे दिल की अब ऐ अश्क-ए-नदामत शुस्त-ओ-शू कर दे
बस इतना कर के दुनिया से मुझे बे-आरज़ू कर दे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
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ग़ज़ल
कुछ नहीं अश्क-ए-नदामत के सिवा साइल के पास
शर्म आती है मुझे जाते हुए क़ातिल के पास
बशीरुद्दीन राज़
शेर
इक अश्क-ए-नदामत से धुल जाते सभी इस्याँ
इक अश्क-ए-नदामत तक पहुँचा ही नहीं कोई
माया खन्ना राजे बरेलवी
ग़ज़ल
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा