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नज़्म
दरबार1911
केरोसिन और बर्क़ और पेट्रोलियम और तारपीन
मोटर और एरोप्लेन और जमघटे और इक़्तिदार
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
थे इक़्तिदार में तो ज़माना था अपने गिर्द
लोगों की थी बरात अभी कल की बात है
फ़िरोज़ नातिक़ ख़ुसरो
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इक़्तिदार
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ऐतबार
ऐतबार शायरी
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नज़्म
हम
बिछी हुई है बिसात जिस की न इब्तिदा है न इंतिहा है
बिसात ऐसा ख़ला है जो वुसअत-ए-तसव्वुर से मावरा है
ज़िया जालंधरी
ग़ज़ल
वबाएँ क़हत ज़लज़ले लपक रहे हैं पय-ब-पय
ये किस का इक़्तिदार है ज़मीं से आसमान तक
राग़िब मुरादाबादी
नज़्म
औरत
देख कर ये इक़्तिबास-ए-कार-गाह-ए-इंस-ओ-जाँ
कार-पर्दाज़ान-ए-क़ुदरत में हुईं सरगोशियाँ
शाद आरफ़ी
नज़्म
लहू पुकारता है
कि उन में अहल-ए-हवस की सदा का सीसा है
वो झुकते रहते हैं लब-हा-ए-इक़तिदार की सम्त