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ग़ज़ल
उन्हीं के सर रहा सेहरा उन्हीं को ताज क़ुर्बां हो
जिन्होंने फाड़ कर कपड़े रखा सर पर कफ़न पहले
विनायक दामोदर सावरकर
शायरी के अनुवाद
हम गुलाबों जैसे हैं, जिन्होंने कभी ज़हमत नहीं की
खिलने की, जब हमें खिलना चाहिए था, और
चार्ल्स बुकोवस्की
ग़ज़ल
अज़हर ग़ौरी नदवी
नज़्म
कहानी सुनाने का मौसम नहीं है
जिन्होंने ज़मानों से उन की कहानी सुनी थी
कहानी ज़मानों से बनती है ऐ जाँ
ज़ियाउल हसन
नज़्म
शिकवा
ये शिकायत नहीं हैं उन के ख़ज़ाने मामूर
नहीं महफ़िल में जिन्हें बात भी करने का शुऊ'र
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
वज़्अ में तुम हो नसारा तो तमद्दुन में हुनूद
ये मुसलमाँ हैं जिन्हें देख के शरमाएँ यहूद