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ग़ज़ल
अब इस 'आलम में तकमील-ए-मज़ाक़-ए-जुस्तुजू होगी
जहाँ हर गाम पर उन की ही सूरत हू-बहू होगी
हक़्क़ी हज़ीं
ग़ज़ल
शाम तम्हीद-ए-ग़ज़ल रात है तकमील-ए-ग़ज़ल
दिन निकलते ही निकल जाती है जाँ हम-नफ़सो
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
मैं ने मंज़र ही नहीं देखे हैं पस-मंज़र भी
मुझ में अब जुरअत-ए-दीदार कहाँ से आई
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
जुरअत-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना मुझे क्यों कर हो 'कँवल'
ख़ातिर-ए-हुस्न पे हर बात गिराँ गुज़री है
कँवल एम ए
नज़्म
मीर-ए-कारवाँ
रास्ता बतला के ऐ 'तकमील' वो रहबर गया
आने वालों के लिए हमवार राहें कर गया
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
मीर-ए-कारवाँ
रास्ता बतला के ऐ 'तकमील' वो रहबर गया
आने वालों के लिए हमवार राहें कर गया
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
सरहद-ए-हिन्दोस्तान
क़ाफ़िले वालों को मंज़िल का पता मिल जाएगा
जबकि ऐ 'तकमील' नेहरू हैं अमीर-ए-कारवाँ