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ग़ज़ल
फिर उठ के गर्म करें कारोबार-ए-ज़ुल्फ़-ओ-जुनूँ
फिर अपने साथ उसे भी असीर-ए-दाम करें
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
फिर उठ के गर्म करें कारोबार-ए-ज़ुल्फ़-ओ-जुनूँ
फिर अपने साथ उसे भी असीर-ए-दाम करें
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
दाम-ए-ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-बुताँ से छुड़ा लिया
क्या बाल बाल मुझ को ख़ुदा ने बचा लिया
सफ़ी औरंगाबादी
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ग़ज़ल
किस को ख़याल-ए-गेसू-ओ-ज़ुल्फ़-ए-दोता नहीं
दुनिया में कौन है जो असीर-ए-बला नहीं
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
दुनिया से दाग़-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम ले गया
मैं गोर में चराग़-ए-सर-ए-शाम ले गया
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
क़िस्मत असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर हो गई
ज़ुल्मत में घिर के महवर-ए-तनवीर हो गई