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ग़ज़ल
दिल को हुस्न-ए-ग़म-ए-जानाँ से फ़रोज़ाँ कर दें
कुफ़्र में रंग भरें ऐसा कि ईमाँ कर दें
मख़मूर भोपाली
ग़ज़ल
सब जिसे कहते हैं वक़्फ़-ए-ग़म-ए-जानाँ होना
अव्वलीं शर्त है उस के लिए इंसाँ होना
कैफ़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
फिर हुजूम-ए-ग़म-ए-जानाँ है ख़ुदा ख़ैर करे
फिर मिरी मौत का सामाँ है ख़ुदा ख़ैर करे
मुख़्तार आशिक़ी जौनपुरी
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ग़ज़ल
फ़साना-ए-ग़म-ए-जानाँ किसी पे बार नहीं
अब अपने दिल के सिवा कोई राज़दार नहीं
उस्ताद अज़मत हुसैन ख़ाँ
ग़ज़ल
अबरार आबिद
ग़ज़ल
हरगिज़ न हो ऐ दिल ग़म-ए-जानाँ की शिकायत
करता है भला कोई भी मेहमाँ की शिकायत