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कुल्लियात
ख़ुदा जाने कि दिल किस ख़ाना-आबादाँ को दे बैठे
खड़े थे 'मीर' साहिब घर के दरवाज़े पे हैराँ से
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
मेहरबाँ पाते नहीं तेरे तईं यक आन हम
फिर भला दिल के निकालें किस तरह अरमान हम
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान
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ग़ज़ल
पहुँचा है आज क़ैस का याँ सिलसिला मुझे
जंगल की रास क्यूँ न हो आब-ओ-हवा मुझे
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान
शेर
अरे ओ ख़ाना-आबाद इतनी ख़ूँ-रेज़ी ये क़त्ताली
कि इक आशिक़ नहीं कूचा तिरा वीरान सूना है
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
यूसुफ़ ही ज़र-ख़रीदों में फ़ीरोज़-बख़्त था
क़ीमत में जिस की फिर वही शाही का तख़्त था
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान
ग़ज़ल
दिल के आईने में नित जल्वा-कुनाँ रहता है
हम ने देखा है तू ऐ शोख़ जहाँ रहता है
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान
शेर
क्यूँ उजाड़ा ज़ाहिदो बुत-ख़ाना-ए-आबाद को
मस्जिदें काफ़ी न होतीं क्या ख़ुदा की याद को
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
क़िस्सा तो ज़ुल्फ़-ए-यार का तूल ओ तवील है
क्यूँकर अदा हो उम्र का रिश्ता क़लील है
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान
ग़ज़ल
दियत इस क़ातिल-ए-बे-रहम से क्या लीजिएगा
अपनी ही आँखों से अब ख़ून बहा लीजिएगा