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ग़ज़ल
तुझे क्या ख़बर मह-ओ-साल ने हमें कैसे ज़ख़्म दिए यहाँ
तिरी यादगार थी इक ख़लिश तिरी यादगार भी अब नहीं
जौन एलिया
शेर
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
सुख़न में ख़ामा-ए-ग़ालिब की आतिश-अफ़्शानी
यक़ीं है हम को भी लेकिन अब उस में दम क्या है
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
शाम-ए-अयादत
वो ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म शमीम-ए-मस्त से धुआँ धुआँ
वो रुख़ चमन चमन बहार-ए-जावेदाँ लिए हुए
फ़िराक़ गोरखपुरी
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शेर
मिरी ज़िंदगी की ज़ीनत हुई आफ़त-ओ-बला से
मैं वो ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म हूँ जो सँवर गई हवा से
परवेज़ शाहिदी
ग़ज़ल
ये ज़ुल्फ़ ख़म-ब-ख़म न हो क्या ताब-ए-ग़ैर है
तेरे जुनूँ-ज़दे की सलासिल को थामना
मोमिन ख़ाँ मोमिन
नज़्म
बेवा की ख़ुद-कुशी
इक मकाँ से भी मकीं की कुछ ख़बर मिलती नहीं
चिलमनें उठती नहीं ज़ंजीर-ए-दर हिलती नहीं
कैफ़ी आज़मी
ग़ज़ल
तिरी ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म ने नए सिलसिले निकाले
मिरी सीना-चाकियों से जो बना मिज़ाज-ए-शाना
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
क्या मिला मिटा कर हम तीरगी के मारों को
अब सँवारिए अपनी ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म तन्हा
मुबारक मुंगेरी
ग़ज़ल
'शमीम' वो न साथ दें तो मुझ से तय न हो सकें
ये ज़िंदगी के रास्ते कि ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म कहें