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नज़्म
ख़ुशामद
पारसा रिंद ख़राबी की ख़ुशामद कीजे
जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उस से सदा अराज़ी है
नज़ीर अकबराबादी
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ग़ज़ल
मिरे शोख़-ए-ख़राबाती की कैफ़िय्यत न कुछ पूछो
बहार-ए-हुस्न को दी आब उस ने जब चरस खेंचा
ख़ान आरज़ू सिराजुद्दीन अली
ग़ज़ल
इधर भी इक नज़र ओ सब की जानिब देखने वाले
कि इक रिंद-ए-ख़राबाती नज़र-अंदाज़ है साक़ी
अफ़क़र मोहानी
ग़ज़ल
हम दिल-ए-ज़ोहरा-वशाँ में ख़ालिक़-ए-अंदेशा हैं
गो ख़राबाती सही जिबरील के हम-पेशा हैं
सिराजुद्दीन ज़फ़र
ग़ज़ल
कहाँ मुमकिन है 'नाजी' सा कि तक़्वा और सलाह आवे
निगाह-ए-मस्त-ए-ख़ूबाँ वो नहीं लेता ख़राबाती
नाजी शाकिर
ग़ज़ल
हूँ मैं इक आशिक़-ए-बे-बाक ओ ख़राबाती ओ रिंद
मुझ से मत पूछ मिरे इल्म-ओ-अदब का अहवाल