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नज़्म
मौज़ू-ए-सुख़न
और मुश्ताक़ निगाहों की सुनी जाएगी
और उन हाथों से मस होंगे ये तरसे हुए हात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ग़ज़ल
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
जौन एलिया
नज़्म
ऑनलाइन आशिक़
नेट पे लोग जो नव्वे से पलस होते हैं
बैठे रहते हैं वो टस होते हैं न मस होते हैं
खालिद इरफ़ान
नज़्म
किसान
जिस के छू जाते ही मिस्ल-ए-नाज़नीन-ए-मह-जबीं
करवटों पर करवटें लेती है लैला-ए-ज़मीं