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ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
उरूक़-मुर्दा-ए-मशरिक़ में ख़ून-ए-ज़िंदगी दौड़ा
समझ सकते नहीं इस राज़ को सीना ओ फ़ाराबी
अल्लामा इक़बाल
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विषय
जादू
जादू शायरी
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नज़्म
परछाइयाँ
मग़रिब के मोहज़्ज़ब मुल्कों से कुछ ख़ाकी-वर्दी-पोश आए
इठलाते हुए मग़रूर आए लहराते हुए मदहोश आए
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इबलीस की मजलिस-ए-शूरा
तब-ए-मशरिक़ के लिए मौज़ूँ यही अफ़यून थी
वर्ना क़व्वाली से कुछ कम-तर नहीं इल्म-ए-कलाम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़िज़्र-ए-राह
ख़ाक-ए-मशरिक पर चमक जाए मिसाल-ए-आफ्ताब
ता-बदख़्शाँ फिर वही ला'ल-ए-गिराँ पैदा करे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
लेनिन
मशरिक़ के ख़ुदावंद सफ़ेदान-ए-रंगी
मग़रिब के ख़ुदावंद दरख़्शंदा फ़िलिज़्ज़ात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
राम
लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त से जाम-ए-हिंद
सब फ़लसफ़ी हैं ख़ित्ता-ए-मग़रिब के राम-ए-हिंद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बहुत देखे हैं मैं ने मशरिक़ ओ मग़रिब के मय-ख़ाने
यहाँ साक़ी नहीं पैदा वहाँ बे-ज़ौक़ है सहबा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ इश्क़ कहीं ले चल
मग़रिब की हवाओं से आवाज़ सी आती है
और हम को समुंदर के उस पार बुलाती है
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
हर गोशा-ए-मग़रिब में हर ख़ित्ता-ए-मशरिक़ में
तशरीह दिगर-गूँ है अब तेरे पयामों की