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नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
उरूक़-मुर्दा-ए-मशरिक़ में ख़ून-ए-ज़िंदगी दौड़ा
समझ सकते नहीं इस राज़ को सीना ओ फ़ाराबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़रमान-ए-ख़ुदा
तहज़ीब-ए-नवी कारगह-ए-शीशागराँ है
आदाब-ए-जुनूँ शाइर-ए-मशरिक़ को सिखा दो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
चकले
कहाँ हैं कहाँ हैं मुहाफ़िज़ ख़ुदी के
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं
साहिर लुधियानवी
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विषय
जादू
जादू शायरी
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नज़्म
ख़िज़्र-ए-राह
ख़ाक-ए-मशरिक पर चमक जाए मिसाल-ए-आफ्ताब
ता-बदख़्शाँ फिर वही ला'ल-ए-गिराँ पैदा करे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
लेनिन
मशरिक़ के ख़ुदावंद सफ़ेदान-ए-रंगी
मग़रिब के ख़ुदावंद दरख़्शंदा फ़िलिज़्ज़ात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वालिदा मरहूमा की याद में
पर्दा-ए-मशरिक़ से जिस दम जल्वा-गर होती है सुब्ह
दाग़ शब का दामन-ए-आफ़ाक़ से धोती है सुब्ह
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रूह-ए-अर्ज़ी आदम का इस्तिक़बाल करती है
खोल आँख ज़मीं देख फ़लक देख फ़ज़ा देख!
मशरिक़ से उभरते हुए सूरज को ज़रा देख!
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बहुत देखे हैं मैं ने मशरिक़ ओ मग़रिब के मय-ख़ाने
यहाँ साक़ी नहीं पैदा वहाँ बे-ज़ौक़ है सहबा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
हर गोशा-ए-मग़रिब में हर ख़ित्ता-ए-मशरिक़ में
तशरीह दिगर-गूँ है अब तेरे पयामों की