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ग़ज़ल
भूले हैं गर्दिश-ए-मीना-ए-फ़लक का नैरंग
अहल-ए-ज़र जितने हैं मस्त-ए-मय-ए-पिंदार हैं सब
असद अली ख़ान क़लक़
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नज़्म
शिकवा
उम्मतें और भी हैं उन में गुनहगार भी हैं
इज्ज़ वाले भी हैं मस्त-ए-मय-ए-पिंदार भी हैं
अल्लामा इक़बाल
शेर
सुराही-ए-मय-ए-नाब-ओ-सफीना-हा-ए-ग़ज़ल
ये हर्फ़-ए-हुस्न-ए-मुक़द्दर लिखा है किस के लिए