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नज़्म
हिन्दी हिन्दुस्तानी
क्या मिलनसार है मिज़ाज इस का
सुल्ह-जूई है काम-काज इस का
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
ग़ज़ल
उस से पूछूँ शब-ए-वस्ल में मैं छेड़ के ये
मुँह से अपने भी तो कह मैं हूँ मिलनसार कि तू
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
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ग़ज़ल
तेरे हद-दर्जा तग़ाफ़ुल से ये मैं समझा हूँ
इस जज़ीरे की फ़ज़ा इतनी मिलनसार नहीं
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
ग़ज़ल
चाय में चीनी मिलाना उस घड़ी भाया बहुत
ज़ेर-ए-लब वो मुस्कुराता शुक्रिया अच्छा लगा