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ग़ज़ल
इन्दिरा वर्मा
ग़ज़ल
तुम्हारे गेसू-ए-पेचाँ की जब तारीफ़ लिखता हूँ
क़लम पाबंद हो जाता है मिसरों की सलासिल में
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
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ग़ज़ल
मिसरों में गेसुओं की फ़साहत का भर के रंग
अपनी हर इक ग़ज़ल को सनद हम ने कर दिया
सिराजुद्दीन ज़फ़र
ग़ज़ल
काग़ज़ पर पेचीदा मिसरों की भर-मार लगा देते हैं
फिर दीवान-ए-मीर को तकते तकते थक कर सो जाते हैं
शब्बीर एहराम
शेर
अब आ के क़लम के पहलू में सो जाती हैं बे-कैफ़ी से
मिसरों की शोख़ हसीनाएँ सौ बार जो रूठती मनती थीं