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ग़ज़ल
इतनी सी हक़ीक़त तो इन अश्कों की जानी है
जम जाए तो ये ख़ूँ है बह जाए तो पानी है
मोहम्मद अरशद आज़मी
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ग़ज़ल
मिली है दर्द की ने'मत निशात-ए-जाँ के लिए
न आह-ओ-नाला की ख़ातिर न कुछ फ़ुग़ाँ के लिए
मोहम्मद अरशद आज़मी
ग़ज़ल
एक ढब के जो क़्वाफ़ी हैं हम उन में 'इंशा'
इक ग़ज़ल और भी चाहें तो सुना सकते हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
मरते मरते असर-ए-सोज़-ए-निहाँ बाक़ी है
बुझ गया दिल का दिया फिर भी धुआँ बाक़ी है
मोहम्मद अरशद आज़मी
ग़ज़ल
अगर इरफ़ान-ए-हस्ती उक़्दा-ए-मुश्किल नहीं होता
तो फिर इंसानियत का कोई मुस्तक़बिल नहीं होता
इफ़्तिख़ार अहमद सिद्दीक़ी
शेर
'सौदा' तू इस ग़ज़ल को ग़ज़ल-दर-ग़ज़ल ही कह
होना है तुझ को 'मीर' से उस्ताद की तरफ़