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नज़्म
यहाँ से शहर को देखो
हर एक राहगुज़र गर्दिश-ए-असीराँ है
न संग-ए-मील न मंज़िल न मुख़्लिसी कि सबील
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
आने से फ़ौज-ए-ख़त के न हो दिल को मुख़्लिसी
बंधुआ है ज़ुल्फ़ का ये छुटाया न जाएगा
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
मुझे 'मग़्मूम' अब हो मुख़्लिसी इस मरने जीने से
बहुत कुछ जी लिया मैं ने बहुत कुछ मर लिया मैं ने
कृष्ण गोपाल मग़मूम
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ग़ज़ल
मुख़्लिसी क़ैद से मुश्किल है मुझे ता-दम-ए-मर्ग
दाम-ए-उल्फ़त में गिरफ़्तार हूँ किन का इन का
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
फ़ाएदे से मुझ को ज़्यादा फ़िक्र है नुक़सान की
मुख़्लिसी के काम में कोई ख़सारा है कि नइं
क़मर आसी
ग़ज़ल
इक ग़म-नसीब को तिरे ग़म से मफ़र नहीं
फ़िक्र-ए-जहाँ से मुख़्लिसी है भी मगर नहीं
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
उसे कहो कि त'अल्लुक़ में मुख़्लिसी बरते
वफ़ा-सरिश्त-ओ-फ़रेबी में इम्तियाज़ करे
अब्दुल्लाह साक़िब
ग़ज़ल
आया जो इस में फिर न हुई मुख़्लिसी नसीब
आग़ोश-ए-क़ब्र रखती है गिर्दाब का ख़वास