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नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
वो शायद माइदे की गंद बिरयानी न खाती हो
वो नान-ए-बे-ख़मीर-ए-मैदा कम-तर ही चबाती हो
जौन एलिया
नज़्म
ख़ून फिर ख़ून है
आज वो कूचा ओ बाज़ार में आ निकला है
कहीं शोला कहीं नारा कहीं पत्थर बन कर
साहिर लुधियानवी
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नज़्म
अपनी मल्का-ए-सुख़न से
तितली का नाज़-ए-रक़्स ग़ज़ाला का हुस्न-ए-रम
मोती की आब गुल की महक माह-ए-नौ का ख़म
जोश मलीहाबादी
शेर
क्या अजब कार-ए-तहय्युर है सुपुर्द-ए-नार-ए-इश्क़
घर में जो था बच गया और जो नहीं था जल गया
सलीम कौसर
ग़ज़ल
क्या अजब कार-ए-तहय्युर है सुपुर्द-ए-नार-ए-इश्क़
घर में जो था बच गया और जो नहीं था जल गया
सलीम कौसर
नज़्म
भारत के सपूतों से ख़िताब
तन-मन मिटाए जाओ तुम नाम-ए-क़ौमीयत पर
राह-ए-वतन में अपनी जानें लड़ाए जाओ
लाल चन्द फ़लक
ग़ज़ल
वो तब'-ए-यास-परवर ने मुझे चश्म-ए-अक़ीदत दी
कि शाम-ए-ग़म की तारीकी को भी नूर-ए-सहर जाना