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ग़ज़ल
इब्न-ए-चमन है तेरी वफ़ाओं पे जाँ-निसार
अपना बना के तू ने मुकम्मल क्या मुझे
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
अब भी है हम को अहल-ए-चमन बस उन्हीं से प्यार
इस दिल को बार बार दुखाने के बअ'द भी
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
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नज़्म
आस्तीन का साँप
है डर कैसा तुम्हारे हम-सफ़र जब अहल-ए-फ़न भी हैं
तुम्हारे साथ शा'इर भी हैं और इन में 'चमन' भी हैं
चमन सीतापुरी
नज़्म
ऐ मिरे सोच-नगर की रानी
सेहन-ए-चमन पर भौउँरों के बादल एक ही पल को छाएँगे
फिर न वो जा कर लौट सकेंगे फिर न वो जा कर आएँगे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
उन से हम से प्यार का रिश्ता ऐ दिल छोड़ो भूल चुको
वक़्त ने सब कुछ मेट दिया है अब क्या नक़्श उभारोगे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
उस की आवारगी को दु'आएँ दो ऐ साहिबान-ए-जुनूँ
जिस के नक़्श-ए-क़दम ने बिछाए सर-ए-रहगुज़र आइने
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
नज़्म
उजाले की लकीर
अब के तज़ईन-ए-चमन होगी लहू की सुर्ख़ी
फ़स्ल-ए-गुल अब के नए जल्वे बिखेरेगी यहाँ
नूर-ए-शमा नूर
ग़ज़ल
सफ़ीर-ए-जाँ हूँ हिसार-ए-बदन में क्या ठहरूँ
चमन-परस्तो न ख़ुशबू के बाल-ओ-पर बाँधो