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शेर
शिकस्त ओ फ़त्ह मियाँ इत्तिफ़ाक़ है लेकिन
मुक़ाबला तो दिल-ए-ना-तवाँ ने ख़ूब किया
नवाब मोहम्मद यार ख़ाँ अमीर
ग़ज़ल
सुर्ख़ चश्म इतनी कहीं होती है बेदारी से
लहू उतरा है तिरी आँखों में ख़ूँ-ख़्वारी से
नवाब मोहम्मद यार ख़ाँ अमीर
शेर
मैं ने कहा कि दावा-ए-उल्फ़त मगर ग़लत
कहने लगे कि हाँ ग़लत और किस क़दर ग़लत
नवाब मोहम्मद सुफ़ अली खाँ बहादुर
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कुल्लियात
कर सर्फ़-ए-दीद उम्र फिरे है तू याँ कहाँ
है सैर मुफ़्त 'मीर' तुझे फिर जहाँ कहाँ
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
असास-ए-ज़िंदगी 'नव्वाब' है उम्मीद फ़र्दा की
यही दिल के ख़राबे को परी-ख़ाना बनाती है
नवाब देहलवी
ग़ज़ल
क़िस्सा तो ज़ुल्फ़-ए-यार का तूल ओ तवील है
क्यूँकर अदा हो उम्र का रिश्ता क़लील है