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ग़ज़ल
जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता
जावेद अख़्तर
नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
जिसे ये भी न हो मालूम वो है भी तो क्यूँ-कर है
कोई हालत दिल-ए-पामाल में रखता भी तो कैसे
जौन एलिया
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नज़्म
अभी कुछ दिन लगेंगे
अभी कुछ दिन लगेंगे
दिल ऐसे शहर के पामाल हो जाने का मंज़र भूलने में
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
नौ-जवान से
जो हो सके हमें पामाल कर के आगे बढ़
जो हो सके तो हमारा जवाब पैदा कर
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
उट्ठो मरने का हक़ इस्तिमाल करो
ज़िल्लत के जीने से मरना बेहतर है
मिट जाओ या क़स्र-ए-सितम पामाल करो
हबीब जालिब
ग़ज़ल
हम भी क्यूँ दहर की रफ़्तार से होते पामाल
हम भी हर लग़्ज़िश-ए-मस्ती को सराहे जाते