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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हम जो तारीक राहों में मारे गए
सूलियों पर हमारे लबों से परे
तेरे होंटों की लाली लपकती रही
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
देख ज़िंदाँ से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख
मजरूह सुल्तानपुरी
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नज़्म
दर्द आएगा दबे पाँव
दर्द आएगा दबे पाँव लिए सुर्ख़ चराग़
वो जो इक दर्द धड़कता है कहीं दिल से परे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ऐ मेरे सारे लोगो
मिरी बस्ती से परे भी मिरे दुश्मन होंगे
पर यहाँ कब कोई अग़्यार का लश्कर उतरा
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
देख ज़िंदाँ से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख