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ग़ज़ल
वादा चूक फिर आया 'नाजी' दर्स की ख़ातिर फड़के मत
छूट गले तेरे ऐ ज़ालिम सब्र कहाँ बे-सब्रों को
नाजी शाकिर
ग़ज़ल
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
जिगर मुरादाबादी
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नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
मिटाया क़ैसर ओ किसरा के इस्तिब्दाद को जिस ने
वो क्या था ज़ोर-ए-हैदर फ़क़्र-ए-बू-ज़र सिद्क़-ए-सलमानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दोस्ती का हाथ
चराग़ जिन से मोहब्बत की रौशनी फैले
चराग़ जिन से दिलों के दयार रौशन हों
अहमद फ़राज़
शेर
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता