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ग़ज़ल
बला-ए-जाँ हैं ये तस्बीह और ज़ुन्नार के फंदे
दिल-ए-हक़-बीं को हम इस क़ैद से आज़ाद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
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ग़ज़ल
देख लो ऐ गुल-रुख़ो मुर्ग़ान-ए-दिल पाबंद हैं
बाल के फँदे की सूरत हैं तुम्हारी चूड़ियाँ
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
इक न इक फंदे ही में फँसना है जब इंसान को
दोश पर दाम-ए-सियाह-ए-सुम्बुलिस्ताँ क्यूँ न हो
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ख़ुशामद
हक़ तो ये है कि ख़ुशामद से ख़ुदा राज़ी
पीने और पहनने खाने की ख़ुशामद कीजे
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
दर्द-ए-मुश्तरक
मैं ने जो ज़ुल्म कभी तुझ से रवा रक्खा था
आज उसी ज़ुल्म के फंदे में गिरफ़्तार हूँ मैं
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
भूका बंगाल
धरती-माता की छाती में चोट लगी है कारी
माया-काली के फंदे में वक़्त पड़ा है भारी
वामिक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
फंदे में फँस के मैं उस के न हुआ फिर जाँ-बर
तार-ए-गेसू ने तिरे मार उतारा मुझ को