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ग़ज़ल
बढ़ गई मय पीने से दिल की तमन्ना और भी
सदक़ा अपना साक़िया यक जाम-ए-सहबा और भी
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
हास्य शायरी
तुझ से अपनी चश्म-ए-तर का आबयाना जब मिला
तेरे दिल के पिंड में नंबर-दार हो जाएँगे हम
बाक़र वसीम क़ाज़ी
नज़्म
शिकवा
लुत्फ़ मरने में है बाक़ी न मज़ा जीने में
कुछ मज़ा है तो यही ख़ून-ए-जिगर पीने में
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
ब-सद दिल दानिशी गुज़रान अपनी मुझ पे तारी की
बहुत उस ने पिलाई और पीने ही न दी मुझ को