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नज़्म
परछाइयाँ
उस शाम मुझे मालूम हुआ जब भाई जंग में काम आएँ
सरमाए के क़हबा-ख़ाने में बहनों की जवानी बिकती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इंक़लाब
अभी दिमाग़ पे क़हबा-ए-सीम-ओ-ज़र है सवार
अभी रुकी ही नहीं तेशा-ज़न के ख़ून की धार
मख़दूम मुहिउद्दीन
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नज़्म
हवेली
हँस रहा है ज़िंदगी पर इस तरह माज़ी का हाल
ख़ंदा-ज़न हो जिस तरह इस्मत पे क़हबा का जमाल
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
शिकस्त-ए-ज़िंदाँ
दरीदा-तन है वो क़हबा-ए-सीम-ओ-ज़र जिस को
बहुत सँभाल के लाए थे शातिरान-ए-कुहन
साहिर लुधियानवी
नज़्म
रक़्क़ासा-ए-औहाम
इस क़हबा-ए-बाज़ारी से रखो न तवक़्क़ो'
एहसान फ़रामोश-ओ-ज़ियाँ-कार है आलम
बेबाक भोजपुरी
ग़ज़ल
मता-ए-क़हबा-ए-दुनिया पे कर न चश्म-ए-सियाह
कि माल-ए-ज़न नहीं खाते जो मर्द होते हैं
क़ाएम चाँदपुरी
ग़ज़ल
वलद-उल-क़हबा से पूछो न, तिरी ज़ात है क्या
बीज में उस के हैं मख़लूत कई ज़ात के बीज