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ग़ज़ल
कैसे करूँ मैं ज़ब्त-ए-राज़ तू ही मुझे बता कि यूँ
ऐ दिल-ए-ज़ार शरह-ए-राज़ मुझ से भी तू छुपा कि यूँ
एस ए मेहदी
शेर
दोनों हों कैसे एक जा 'मेहदी' सुरूर-ओ-सोज़-ए-दिल
बर्क़-ए-निगाह-ए-नाज़ ने गिर के बता दिया कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
हमारी ज़ीस्त में थे साथ कौन कौन ऐ 'बर्क़'
अब एक फ़ातिहा को क़ब्र पर नहीं आता
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ग़ज़ल
ताक़त वो कहाँ जाएँ तसव्वुर में जो ऐ 'बर्क़'
बरसों से हमें होश में आना नहीं मिलता
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ग़ज़ल
अपने अशआर का ऐ 'बर्क़' न क्यूँ शोहरा हो
साथ हैं ताइर-ए-मज़मूँ के उड़ाने वाले
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ग़ज़ल
बदनामी से डरते हो अबस इश्क़ में ऐ 'बर्क़'
कब तक बशर इस बात का चर्चा न करेंगे