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नज़्म
शिकवा
हम तो रुख़्सत हुए औरों ने सँभाली दुनिया
फिर न कहना हुई तौहीद से ख़ाली दुनिया
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रक़ीब से!
तू ने देखी है वो पेशानी वो रुख़्सार वो होंट
ज़िंदगी जिन के तसव्वुर में लुटा दी हम ने
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
अक्स-ए-रुख़्सार ने किस के है तुझे चमकाया
ताब तुझ में मह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी
बहादुर शाह ज़फ़र
नज़्म
याद
इस क़दर प्यार से ऐ जान-ए-जहाँ रक्खा है
दिल के रुख़्सार पे इस वक़्त तिरी याद ने हात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
दो इश्क़
वो अक्स-ए-रुख़-ए-यार से लहके हुए अय्याम
वो फूल सी खुलती हुई दीदार की साअ'त
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
अब जा के कुछ खुला हुनर-ए-नाख़ुन-ए-जुनूँ
ज़ख़्म-ए-जिगर हुए लब-ओ-रुख़्सार की तरह
मजरूह सुल्तानपुरी
नज़्म
लौह-ओ-क़लम
बाक़ी है लहू दिल में तो हर अश्क से पैदा
रंग-ए-लब-ओ-रुख़्सार-ए-सनम करते रहेंगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दर्द आएगा दबे पाँव
हल्क़ा-ए-ज़ुल्फ़ कहीं गोशा-ए-रुख़्सार कहीं
हिज्र का दश्त कहीं गुलशन-ए-दीदार कहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मौज़ू-ए-सुख़न
उन का आँचल है कि रुख़्सार कि पैराहन है
कुछ तो है जिस से हुई जाती है चिलमन रंगीं