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ग़ज़ल
वो जिस पे तुम्हें शम-ए-सर-ए-रह का गुमाँ है
वो शो'ला-ए-आवारा हमारी ही ज़बाँ है
मजरूह सुल्तानपुरी
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नज़्म
हुस्न-ए-सर-ए-राह
गुज़र रहा है इधर से तो मुस्कुराता जा
खिले नहीं हैं जो ग़ुंचे उन्हें खिलाता जा
जौहर निज़ामी
ग़ज़ल
न वो वादा-ए-सर-ए-राह है न वो दोस्ती न निबाह है
न वो दिल-फ़रेबी के हैं चलन न वो प्यारी प्यारी निगाह है