aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "sajjad-ali"
क़ैस रामपुरी
1943 - 1974
शायर
सज्जाद अली ख़ान सज्जाद
लेखक
साजिद अली
born.1995
सय्यद सज्जाद अली
सज्जाद अली
born.1966
कलाकार
सय्यद सज्जाद अली रिज़वी
सैयद सज्जाद अली सब्ज़पोश
सय्यद अबुल फ़ैज़ सज्जाद अली
सज्जाद अली अंसारी
नज़्म तबातबाई
1854 - 1933
अब्दुल समद आसी
born.1940
मिर्ज़ा मोहम्मद सज्जाद अली
संपादक
मिर्ज़ा सज्जाद अली ख़ान
सज्जाद अली ख़ाँ अख़्तर
शबाना सज्जाद अली शेख
पिन्हाई जा रही हैं आलिमान-ए-दीं को ज़ंजीरेंये ज़ेवर सय्यद-ए-सज्जाद-आली की विरासत है
कभी लिखनाहमारे बा'द जो गुज़री
ऐ काश अपने सारे जज़्बात रोक लेताजिस बात पर वो रूठे वो बात रोक लेता
तुझ को जीना हुआ पुर-ख़तर ज़िंदगीजान लेगी तिरी रहगुज़र ज़िंदगी
सामने आने पे उस के आज वहशत हो गईदिल की दीवारों से इक तस्वीर रुख़्सत हो गई
तख़्लीक़ी ज़बान तर्सील और बयान की सीधी मंतिक़ के बर-अक्स होती है। इस में कुछ अलामतें है कुछ इस्तिआरे हैं जिन के पीछे वाक़यात, तसव्वुरात और मानी का एक पूरा सिलसिला होता है। सय्याद, नशेमन, क़फ़स जैसी लफ़्ज़ियात इसी क़बील की हैं। शायरी में सय्याद चमन में घात लगा कर बैठने वाला एक शख़्स ही नहीं रह जाता बल्कि उस की किरदारी सिफ़त उस के जैसे तमाम लोग को उस में शरीक कर लेती है। इस तौर पर ऐसी लफ़्ज़ियात का रिश्ता ज़िंदगी की वुसअत से जुड़ जाता है। यहाँ सय्याद पर एक छोटा सा इन्तिख़ाब पढ़िए।
Abdul Ahad Saaz
महिलाओं की रचनाएँ
Siraj-e-Matam
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Iqbleem-e-Sukhan Ke Tajdar
कौकब क़द्र सज्जाद अली मिर्ज़ा
Hadi-ul-Tawareekh
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Mahbooba Ghalib ki
Mahshar-e-Khayal
इंतिख़ाब / संकलन
Daur-e-Awwal Ka Awadh Panch
भारत का इतिहास
Iqleem-e-Sukhan Ke Tajdar
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
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Mukhammas
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Farabi Ka Siyasi Falsafa
सय्यद अली सज्जाद
राजनीतिक
Urdu Adab Beesvin Sadi me
सय्यद अली हसनैन ज़ेबा
हर शय है सोगवार मगर क्या कोई कहेकहने को है हज़ार मगर क्या कोई कहे
परेशाँ मुझ को अक्सर मेरी जाँ मा'लूम होती हैहर इक रूदाद अपनी दास्ताँ मा'लूम होती है
शहर की शायरी सेदूर उफ़्तादा ज़मीनों तक
वक़्त को नाप लेंदेख लें किस के चेहरे पे परछाईं है शाम की
तेरा जल्वा जिधर नज़र आयारक़्स करता उधर बशर आया
कैक्टस के नुकीले काँटेकिसी पेंटिंग का मौज़ूअ' तो बन सकते हैं
एक आँचल हैजो फैला है उफ़ुक़-ता-ब-उफ़ुक़
रात को मेरे बाम तलक महताब था या तुम आए थेझील किनारे रक़्स परी का ख़्वाब था या तुम आए थे
घर अपना छोड़ कर जाने का मेरा मन नहीं करताफिर इक बंजारा बन जाने का मेरा मन नहीं करता
लाख आशिक़ हुआ करे कोईइश्क़ का हक़ अदा करे कोई
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