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ग़ज़ल
बदीउज़्ज़माँ सहर
ग़ज़ल
जो इंसाँ बारयाब-ए-पर्दा-ए-असरार हो जाए
तो इस बातिल--कदे में ज़िंदगी दुश्वार हो जाए
सीमाब अकबराबादी
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नज़्म
कातिक का चाँद
ये बड़ा चाँद चमकता हुआ चेहरा खोले
बैठा रहता है सर-ए-बाम-ए-शबिस्ताँ शब को