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नज़्म
तमाम क़ुफ़्ल तोड़ दो
सुरों के पिंजरों में क़ैद पंछियों के ग़ोल हैं
इन्हें हवा में छोड़ दो
ज़ीशान साजिद
ग़ज़ल
गर दिल को बस में पाएँ तो नासेह तिरी सुनें
अपनी तो मर्ग-ओ-ज़ीस्त है उस बेवफ़ा के हाथ
निज़ाम रामपुरी
नज़्म
आज इक हर्फ़ को फिर ढूँडता फिरता है ख़याल
सूर-ए-महशर ही सही बाँग-ए-क़यामत ही सही
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ग़ज़ल
ख़ुदी हो इल्म से मोहकम तो ग़ैरत-ए-जिब्रील
अगर हो इश्क़ से मोहकम तो सूर-ए-इस्राफ़ील
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दबा रक्खा है इस को ज़ख़्मा-वर की तेज़-दस्ती ने
बहुत नीचे सुरों में है अभी यूरोप का वावैला
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
धरती की सुलगती छाती से बेचैन शरारे पूछते हैं
बद-बख़्त फ़ज़ाएँ किस की हैं बरबाद नशेमन किस के हैं
कुछ हम भी सुनें हम को भी सुना
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
नज़्म
ख़ाक-ए-हिंद
ऐ सूर-ए-हुब्ब-ए-क़ौमी इस ख़्वाब से जगा दे
भूला हुआ फ़साना कानों को फिर सुना दे
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
वो फ़रिश्ते आप तलाश करिए कहानियों की किताब में
जो बुरा कहें न बुरा सुनें कोई शख़्स उन से ख़फ़ा न हो
बशीर बद्र
नज़्म
नया जन्म
तुम्हारे शेर पढ़ कर जाने क्यूँ महसूस होता है
कि कोई साज़ पर मद्धम सुरों में गुनगुनाता है