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ग़ज़ल
तर्ज़-ए-निगाह-ए-इज्ज़ यही अर्ज़-ए-हाल है
ऐ रम्ज़-दाँ हमन के अँखियों का कलाम जान
आबरू शाह मुबारक
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नज़्म
कैफ़ियत
ऐ निगाह-ए-मस्त अपना सा ही मस्ताना बना
मय बना दे रूह को और जाँ को पैमाना बना
अशरफ़ बाक़री
ग़ज़ल
तबीब आरवी
ग़ज़ल
ऐ निगाह-ए-दोस्त ये क्या हो गया क्या कर दिया
पहले पहले रौशनी दी फिर अंधेरा कर दिया