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नज़्म
मादरी ज़बान
दुश्मन के भी दिलों पर है जिस का ख़ौफ़ तारी
वो मादरी ज़बाँ है उर्दू ज़बाँ हमारी
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
उर्दू ज़बान
उर्दू हमारे देश की शीरीं ज़बान है
तहज़ीब की है वज़्अ शराफ़त की जान है
हबीब अहमद अंजुम दतियावी
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नज़्म
मिरी हिजरतों की ज़मीन पर तिरी चाहतों से लिखा हुआ
तिरा एक ख़त मिरे पास है वो मोहब्बतों से लिखा हुआ
थी वो फ़ासलों की तपिश अजब मिरे हौसले भी पिघल गए
तारिक़ क़मर
नज़्म
ज़बाँ जिस को हर इक बोले उसी का नाम है उर्दू
ज़बाँ जिस को हर इक बोले उसी का नाम है उर्दू
ज़बान-ए-शेर में फ़ितरत का इक इनआ'म है उर्दू
माजिद-अल-बाक़री
ग़ज़ल
वो बन कर बे-ज़बाँ लेने को बैठे हैं ज़बाँ मुझ से
कि ख़ुद कहते नहीं कुछ और कहलवाते हैं हाँ मुझ से
आरज़ू लखनवी
नज़्म
उर्दू
फ़रोग़-ए-चश्म है तस्कीन-ए-दिल है बे-गुमाँ उर्दू
हर इक आलम में है गोया बहार-ए-गुल-फ़िशाँ उर्दू