aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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Dhanna Singh Shad Dehlvi
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काम चल निकला, चुनांचे उसने थोड़ी ही देर के बाद अपना अड्डा अंबाले छावनी में क़ायम कर दिया। यहां वो गोरों के फ़ोटो खींचता रहता। एक महीने के अंदर अंदर उसकी छावनी के मुतअद्दिद गोरों से वाक़फ़ियत होगई, चुनांचे वो सुल्ताना को वहीं ले गया। यहां छावनी में ख़ुदाबख़्श के...
कहते हैं कि नौ अप्रैल की शाम को डाक्टर सत्यपाल और डाक्टर किचलू की जिला वतनी के अहकाम डिप्टी कमिशनर को मिल गए थे। वो उनकी तामील के लिए तैयार नहीं था। इसलिए कि उसके ख़याल के मुताबिक़ अमृतसर में किसी हैजानख़ेज बात का ख़तरा नहीं था। लोग पुरअम्न तरीक़े...
अशोक जब पहली बार महल में गया तो महाराजा ग ने कई घंटे सर्फ़ करके उसको अपने तमाम नवादिर दिखाए। ये चीज़ें जमा करने में महाराजा को सारी दुनिया का दौरा करना पड़ा था। हर मुल्क का कोना कोना छानना पड़ा था। अशोक बहुत मुतअस्सिर हुआ। चुनांचे उसने नौजवान महाराजा...
जैसा कि बयान किया जा चुका है, उस्ताद मंगू को गोरों से बेहद नफ़रत थी। जब उसने अपने ताज़ा गाहक को गोरे की शक्ल में देखा तो उसके दिल में नफ़रत के जज़्बात बेदार हो गए। पहले तो उसके जी में आई कि बिल्कुल तवज्जो न दे और उसको छोड़...
"समझ गया" मैंने चिड़ कर कहा। हमारे क़स्बे में हाई स्कूल ज़रूर था लेकिन मैट्रिक का इम्तिहान का सेंटर न था। इम्तिहान देने के लिए हमें ज़िला जाना होता था। चुनांचे वो सुब्ह आ गई जिस दिन हमारी जमात इम्तिहान देने के लिए ज़िला जा रही थी और लारी के...
While truthfulness is one reality, deceit is another. It has an added meaning with respect to lovers. It brings suffering and pain and causes untold misery to them. These verses would take you closer to this experience.
The pleasures and pains of meeting have been the favourite concern of poets in all ages. Most often, they have written about the meeting and union of lovers in separation. These verses expose you to the pleasures of meeting which also lead to separation sometimes.
धक्काدھکا
jolt, push, blow
Mushahidat
Hosh Bilgrami
Autobiography
Dhoka
Unknown Author
Short-story
Maktab Ki Mohabbat Laila Majnun
Khoobsurat Dhoka
Film Songs
Dhoka Ya Tilismi Fanoos
Munshi Sajjad Hussain
Novel
Nazri Dhoka Ma Aqali Dhoka
Unknown Editor
Islamiyat
Ek Piya Ek Dhoka
Dr. Ram Sharan Sharma
Romantic
Bahut Bada Fareb Bahut Bada Dhoka
Political
Zindagi Ya Maut
Ishrat Rahmani
Short Story
Khatarnak Dhoka
Dhoka Ya Kamalat-e-Englistan
Munshi Ahmaduddin
Dhachka
Nayab Hasan Naqvi
मुझे ऐसा महसूस हुआ कि उसने झूट बोला है क्योंकि उसके लहजे से इस बात का पता चलता था कि उसे कोई जल्दी नहीं है और न उसे कहीं जाना है। आप कहेंगे कि लहजे से ऐसी बातों का किस तरह पता चल सकता है। लेकिन हक़ीक़त ये है कि...
त्रिलोचन के लिए ये बिल्कुल एक नया तजुर्बा, एक नई कैफ़ियत थी... रात को खुले आसमान के नीचे होना। उसने महसूस किया कि वो चार बरस तक अपने फ़्लैट में क़ैद रहा और क़ुदरत की एक बहुत बड़ी नेअमत से महरूम। क़रीब क़रीब तीन बजे थे। हवा बेहद हल्की फुल्की...
बच्चों का बाप चिरंजी की बीवी की सब इल्तिजाएं सुनता है मगर वो कैसे उस औरत को पनाह दे सकता है जिसने अपने आपको झुमकों के बदले बेचा। एक सौदा था जो ख़त्म हो गया... चिरंजी की बीवी को ये सुन कर बहुत सदमा होता है। नाकाम और मायूस हो...
जुम्मे ने बड़ी बेतवज्जही से कहा, “होने दो, मुझे किसी चीज़ का होश नहीं।” “सरकार, आप होश में आइए, चारों तरफ़ दुश्मन ही दुश्मन हैं। ऐसा न हो वो आप की ग़फ़लत से फ़ाएदा उठाकर आपकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा कर लें। आपसे मुक़द्दमाबाज़ी क्या होगी, मेरी तो यही मुख़्लिसाना राय...
लड़की ने मुँह मोड़ लिया। अनारकली का मोड़ आया तो दोनों सहेलियां ठहर गईं। अख़लाक़ पास से गुज़रने लगा तो उस लड़की ने उससे कहा, “आप हमारे पीछे न आईए। ये बहुत बुरी बात है।”...
यहाँ पहली बार हिन्दुस्तान की सरहद पर इस्लाम का पर्चम लहराया था। मुसावात और उख़ुव्वत और इंसानियत का पर्चम। सब मर गए।...
ख़त-ओ-किताबत के ज़रिये से ये तय होगया था कि हरिंदरनाथ त्रिपाठी ख़ुद जोगिंदर सिंह के मकान पर चला आएगा क्योंकि त्रिपाठी ये फ़ैसला नहीं कर सका था कि वो लारी से सफ़र करेगा या रेलवे ट्रेन से। बहरहाल ये बात तो क़तई तौर पर तय हो गई थी कि जोगिंदर...
रूपा के सीने से एक बेइख़्तियार आह निकल गई, “वो पहले जितना नज़दीक था अब उतना ही दूर है!” “मैं उसका नाम पूछता हूँ और जानती हो मैं तुमसे उसका नाम क्यों पूछता हूँ? इसलिए कि वो तुम्हारा पति है और तुम उसकी पत्नी हो। तुम उसकी हो और वो...
लेकिन आदमी हमेशा तो ताड़ी नहीं पी सकता। एक दिन पिएगा, दो दिन पिएगा, तीसरे दिन की ताड़ी के पैसे कहाँ से लाएगा। आख़िर खोली का किराया देना है। राशन का ख़र्चा है। भाजी तरकारी है। तेल और नमक है। बिजली और पानी है। शांता बाई की भूरी साड़ी है...
“हटाईए भी।” ये कह वो मुस्कुराई। “मैं अब आपसे कुछ नहीं पूछूंगी।” मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “जब पूछोगी तो मैं नरायन की सिफ़ारिश करूंगा।”...
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