aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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Professor Mahmood Alam
1941 - 2023
Author
Professor Mazhar Mehdi
Seema Saghir
1959 - 2022
Professor Ahmad Sajjad
born.1939
Editor
Professor Manzar Hussain
born.1958
Shabbeer Ahamad Qadri
born.1960
S Masood Siraj
Prof.K.Husain
Professor Ahmad Saeed
Prof. Bartold
Professor Manoranjan
1900 - 1965
Professor Majid Husain
Professor Mamoon Aiman
Prof.Pushpap
Prof Azeez-ur-Rahman
(दौर-ए-जदीद के शोअरा की एक मजलिस में मिर्ज़ा ग़ालिब का इंतज़ार किया जा रहा है। उस मजलिस में तक़रीबन तमाम जलील-उल-क़द्र जदीद शोअरा तशरीफ़ फ़र्मा हैं। मसलन मीम नून अरशद, हीरा जी, डाक्टर क़ुर्बान हुसैन ख़ालिस, मियां रफ़ीक़ अहमद ख़ूगर, राजा अह्द अली खान, प्रोफ़ेसर ग़ैज़ अहमद ग़ैज़, बिक्रमा जीत...
कृष्णा कुमारी और कृष्ण कुमार दोनों अंदर दाख़िल होते हैं। कृष्ण कुमार एक मेज़ की तरफ़ बढ़ता है कृष्णा कुमारी दूसरे मेज़ की तरफ़ कृष्णा इधर कृष्णा कुमारी का इंटरव्यू शुरू होता है उधर कृष्ण कुमार का। कृष्णा कुमारी का नाम पढ़ कर प्रोफ़ेसर कहता है, “आप कबड्डी खेलती हैं।...
इससे ज़ाहिर है कि मिर्ज़ा न सिर्फ़ क़ैस आमिरी के ज़माने में ज़िंदा थे बल्कि उम्र में भी उससे बड़े थे क्योंकि जिन दिनों क़ैस एक मुब्तदी छोकरे की हैसियत से मकतब की दीवारों पर लाम अलिफ़ ला लिखता था उस वक़्त मिर्ज़ा साहिब बेख़ुदी के प्रोफ़ेसर हो चुके थे।...
माह रमज़ान में एक बार प्रोफ़ेसर हमीद अहमद ख़ाँ, डाक्टर सईद उल्लाह और प्रोफ़ेसर अब्दुल वाहिद अल्लामा इक़बाल के घर पर हाज़िर हुए। कुछ देर बाद मौलाना अब्दुल मजीद सालिक और मौलाना ग़ुलाम रसूल मेहर भी तशरीफ़ ले आए। इफ़्तारी के वक़्त अल्लामा ने घंटी बजाकर नौकर को बुलाया और...
और अगर रिचर्डस की इस्तिलाह साज़ी को कॉलिंगवुड के सयाक़-ओ-सबाक में रखकर पढ़ा जाये तो शे’र का आज़ाद वुजूद और मुस्तहकम हो जाता है, लेकिन बात आगे बढ़ती नहीं। या यूं कहें कि इन लोगों की बात इतनी आगे बढ़ी हुई है कि शुरू की मंज़िलें सब गर्द-ए-तफ़क्कुर से धुँदली...
One of the greatest Urdu poets of modern times, Firaq Gorakhpuri was born in 1896 at Gorakhpur, UP. He has spent major part of his life in Allahabad working as an English literature professor. In his poetic works, one can find a fine representation of Indian language as well as culture. He has been famous for his critical analysis. He has been awarded with Bhartiya Gyaanpeeth.
प्रोफ़ेसरپروفیسر
professor
Aligarh Tahreek
Literary movements
Maulana Abul Kalam Azad Ki Ilmi, Adabi, Qaumi Wa Malli Khidmat
Language & Literature
Mahjoor
Professor Buddhu
Fikr Taunsvi
Humorous
Geographia Aalam-e-Islam
Prof. S. Ki Ajeeb Dastan
Musharraf Alam Zauqi
Novel
Tafheem-o-Tayun-e-qadr
Tazkira
Professor Vaimbari ka Safarnama
Professor Waimbari
Travelogue
Professor Ale-Ahmad Suroor
Khaliq Anjum
Criticism
Falsafa-e-Jamaliyat
Professor Mujeeb-ur-Rahman
Aestheticism
Iqbal Aur Dante
Ijtemai Zindagi Ki Ibteda
Prof. Mohammad Aaqil
Rasheed Ahmad Siddiqi Ke Kuchh Khutoot, Kuchh Ruqaat
Khuda Bakhsh Library, Patna
Letters
The Prophet Nabi
Gibran Khalil Gibran
Epics
Naqd-e-Adab
Professor Laseel Aibar Kombi
बाहर से आते हैं तो ख़ुश ख़ुश, कोई न कोई शगूफ़ा लिए हुए, मेरी ख़ुशामद भी ख़ूब हो रही है। मेरे मैके वालों की तारीफ़ भी हो रही है। मैं हज़रत की चाल समझ रही थी, ये सारी दिलजुई महज़ इसलिए थीं कि आपके बिरादर मुकर्रम के मुताल्लिक़ कुछ न...
शाहिदा अब बी.ए में थी। ख़ूबसूरत होने के इलावा काफ़ी ज़हीन थी। उसके प्रोफ़ेसर उसकी ज़हानत और ख़ूबसूरत से बड़े मरऊ’ब थे। प्रिंसिपल की चहेती थी, इसलिए कि वो उसकी बड़ी बहन के बड़े लड़के की बेटी थी। कॉलिज में चे-मी-गोईयां होती ही रहती हैं। शाहिदा के मुतअ’ल्लिक़ क़रीब क़रीब...
उर्दू की क्लास जारी थी। पहली क़तार में पाँच दम्यंती रूप लड़कियां और बाक़ी कुर्सियां पर छब्बीस जगत रंग लड़के बैठे थे। प्रोफ़ेसर समदानी ने दीवान-ए-ग़ालिब में बाएं हाथ की अंगुश्त-ए-शहादत निशानी के तौर पर फंसाई और गरजदार आवाज़ में बोला, “मिस सरताज, सुबुक सर के क्या मा’नी हैं?” जब...
बड़े लोगों के दोस्तों और हम जलीसों में दो तरह के लोग होते हैं। एक वो जो इस दोस्ती और हम जलीसी का इश्तिहार देकर ख़ुद भी नामवरी हासिल करने की कोशिश करते हैं। दूसरे वो इ’ज्ज़-ओ-फ़रोतनी के पुतले जो शोहरत से भागते हैं। कम अज़ कम अपने ममदूह की...
ये उस ज़माने की बात है जब मेरी उम्र बस कोई तेरह-चौदह बरस की थी। हम जिस महल्ले में रहते थे वो शहर के एक बा-रौनक बाज़ार के पिछवाड़े वाक़े था। उस जगह ज़्यादा-तर दरमयाने तबक़े के लोग या ग़रीब-ग़ुरबा ही आबाद थे। अलबत्ता एक पुरानी हवेली वहाँ ऐसी थी...
इतवार की शाम आ पहुंची। होमबर्ग हाल जर्मन “अह्ल-ए-ज़ौक़” से खचा-खच भर गया। सदारत की कुर्सी पर बर्लिन के एक मशहूर माहिर अदबीयात जल्वा-अफ़रोज़ थे। उनके एक तरफ़ सरदार प्रीतम सिंह और दूसरी तरफ़ मिर्ज़ा काज़िम बैठे थे। तक़रीर का वक़्त आगया और सरदार साहिब तक़रीर करने के लिए उठे...
ये सुन कर उसको कुछ ऐसा सदमा पहुंचा कि वो थोड़ी देर के बिल्कुल खो सा गया। जब बोला तो उसकी आवाज़ खोखली थी, “मैं दस बरस तक स्कूल में लड़कियां पढ़ाता रहा हूं, हमेशा मैंने उनको अपनी बच्चियां समझा... तुम... तुम एक और हो जाओगी।” सकीना के लिए कोई...
yahii bas 'akbar' kii iltijaa hai janaab baarii me.n ye du.aa haiuluum o hikmat kaa dars in ko professor de.n samajh KHudaa de
आदमी एक-बार प्रोफ़ेसर हो जाए तो उम्र-भर प्रोफ़ेसर ही रहता है, ख़ाह बाद में समझदारी की बातें ही क्यों न करने लगे।...
ताजपोशी की तस्वीरें क्लिक क्लिक कर खिंचने लगीं तो मुझे ये फिक्र लाहक़ हुई कि अगर ख़ुदा न-ख़्वास्ता ये पंजाब के अख़बारों में छप गई तो लोग कहेंगे कि कराची के अह्ल-ए-ज़बान हज़रात बुज़ुर्गों के साथ दुल्हनों का सुलूक करते हैं और अ'रूसी ज़ेवरात के इस्तेमाल में तज़कीर-ओ-तानीस का ज़रा...
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