aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ہاتھی"
कमल हातवी
शायर
प्रेयस हाथी "राक़िम"
सयय्द अली शबर हात्मी
संपादक
क्या साज़ जड़ाओ ज़र-ज़ेवर क्या गोटे थान कनारी केक्या घोड़े ज़ीन सुनहरी के क्या हाथी लाल अमारी के
कुछ जगमग जुगनू जंगल सेकुछ झूमते हाथी बादल से
जब मैं जाड़ों में लिहाफ़ ओढ़ती हूँ, तो पास की दीवारों पर उसकी परछाईं हाथी की तरह झूमती हुई मालूम होती है और एक दम से मेरा दिमाग़ बीती हुई दुनिया के पर्दों में दौड़ने भागने लगता है। न जाने क्या कुछ याद आने लगता है।माफ़ कीजिएगा, मैं आपको ख़ुद अपने लिहाफ़ का रूमान-अंगेज़ ज़िक्र बताने नहीं जा रही हूँ। न लिहाफ़ से किसी क़िस्म का रूमान जोड़ा ही जा सकता है। मेरे ख़याल में कम्बल आराम देह सही, मगर उसकी परछाईं इतनी भयानक नहीं होती... जब लिहाफ़ की परछाईं दीवार पर डगमगा रही हो।
बड़ी-बड़ी इमारतें आने लगीं। ये अदालत है। ये मदरसा है। ये क्लब-घर है। इतने बड़े मदरसे में कितने सारे लड़के पढ़ते होंगे। लड़के नहीं हैं जी, बड़े-बड़े आदमी हैं। सच उनकी बड़ी-बड़ी मूँछें हैं। इतने बड़े हो गए, अब तक पढ़ने जाते हैं। आज तो छुट्टी है लेकिन एक बार जब पहले आए थे। तो बहुत से दाढ़ी मूँछों वाले लड़के यहाँ खेल रहे थे। न जाने कब तक पढ़ेंगे। और क्या करेंगे इतन...
सीना छाती दस्त हाथ और पा पाँवशाख़ टहनी बर्ग पत्ता साया छाँव
मौत सब से बड़ी सच्चाई और सब से तल्ख़ हक़ीक़त है। इस के बारे मे इंसानी ज़हन हमेशा से सोचता रहा है, सवाल क़ाएम करता रहा है और इन सवालों के जवाब तलाश करता रहा है लेकिन ये एक ऐसा मुअम्मा है जो न समझ में आता है और न ही हल होता है। शायरों और तख़्लीक़-कारों ने मौत और उस के इर्द-गिर्द फैले हुए ग़ुबार में सब से ज़्यादा हाथ पैर मारे हैं लेकिन हासिल एक बे-अनन्त उदासी और मायूसी है। यहाँ मौत पर कुछ ऐसे ही खूबसूरत शेर आप के लिए पेश हैं।
उम्मीद में जीवन की आस हमारी इच्छा और आकांक्षा सब शामिल हैं । उम्मीद असल में जीवन को सहारा देने वाली और आगे बढ़ाने वाली अवस्था का नाम है । एक ऐसी अवस्था जो धुंद की तरह होती है उसमें कुछ साफ़ दिखाई नहीं देता लेकिन रौशनी का धोका रहता है । जिस तरह हाथ से सब कुछ निकल जाने के बाद भी एक उम्मीद हमें ज़िंदा रखती है ठीक उसी तरह प्रेमी के लिए भी उम्मीद किसी संपत्ति से कम नहीं । प्रेमी उम्मीद के सहारे ही ज़िंदा रहता है और तमाम दुखों के बावजूद उसे उम्मीद रहती है कि उसका प्रेम उसको मिल कर रहेगा । यहाँ उम्मीद से संबंधित चुनिंदा शायरी को पढ़ते हुए आप महसूस करेंगे कि ये मुश्किल वक़्तों में हौसला देने वाली शायरी भी है ।
ज़ेहन में ऐसे ग़लत ख़याल का आना जिस का सच्चाई से कोई वास्ता न हो, आम बात है। लेकिन यह बदगुमानी अगर रिश्तों के दर्मियान जगह बना ले तो सारी उम्र की रोशनी को स्याही में तब्दील कर देती है। आशिक और माशूक़ उस आग में सुलगते और तड़पते रहते हैं जिसका कोई वजूद होता ही नहीं। पेश है बदगुमानी शायरी के कुछ चुनिंदा अशआरः
हाथीہاتھی
Elephant
Hari Aur Dusre Hathi
शंकर
1974कहानी
Hathi Ka Anda
अननोन ऑथर
कहानी
दो हाथ
इस्मत चुग़ताई
1966कहानियाँ
हाथ हमारे क़लम हुए
राजिंदर सिंह बेदी
1988अफ़साना
Doobte Badan Ka Hath
रियाज़ मजीद
2012कहानियाँ
Bahadur Shah Badshah Ka Maula Bakhsh Hathi
मीर बाक़र अली
1918
Tilishmi Hathi
शिव नाथ राय
Hath Hamare Qalam Huye
1974
नींद की मुसाफ़तें
अज़रा अब्बास
1998नज़्म
1992कहानियाँ
कटा हुआ हाथ
शमीम हनफ़ी
1996कहानी
Banda-e-Momin Ka Hath
2011
Pyase Hath
फ़ारिग़ बुख़ारी
1982काव्य संग्रह
Khali Hath
ए. ख़य्याम
2005अफ़साना
किसी वक़्त दोनों बैल नए गाँव जा पहुँचे। दिन भर के भूके थे, दोनों का दिल भारी हो रहा था। जिसे उन्होंने अपना घर समझा था, वो उनसे छूट गया था। जब गाँव में सोता पड़ गया, तो दोनों ने ज़ोर मार कर रस्से तुड़ा लिये और घर की तरफ़ चले। झूरी ने सुबह उठ कर देखा तो दोनों बैल चरनी पर खड़े थे। दोनों के घुटनों तक पाँव कीचड़ में भरे हुए थे। दोनों की आँखों में मुहब्बत की न...
(1)बेनी माधव सिंह मौज़ा गौरीपुर के ज़मींदार नंबरदार थे। उनके बुज़ुर्ग किसी ज़माने में बड़े साहिब-ए-सर्वत थे। पुख़्ता तालाब और मंदिर उन्हीं की यादगार थी। कहते हैं इस दरवाज़े पर पहले हाथी झूमता था। उस हाथी का मौजूदा नेम-उल-बदल एक बूढ़ी भैंस थी जिसके बदन पर गोश्त तो न था मगर शायद दूध बहुत देती थी। क्यूँकि हर वक़्त एक न एक आदमी हाँडी लिए उसके सर पर सवार रहता था। बेनी माधव सिंह ने निस्फ़ से ज़ाइद जायदाद वकीलों की नज़्र की और अब उनकी सालाना आमदनी एक हज़ार से ज़ाइद न थी।
याद नहीं कब उसके शबनमी दुपट्टे बने, टके तैयार हुए और गाड़ी के भारी क़ब्र जैसे संदूक़ की तह में डूब गए। कटोरियों के जाल धुँदला गए। गंगा-जमुनी किरनें माँद पड़ गईं। तूली के लच्छे उदास हो गए मगर कुबरा की बरात न आई। जब एक जोड़ा पुराना हो जाता तो उसे चाले का जोड़ा कह कर सैंत दिया जाता और फिर एक नए जोड़े के साथ नई उम्मीदों का इफ़्तिताह हो जाता। बड़ी छानबीन के बा'...
एक हाथी एक राजा एक रानी के बग़ैरनींद बच्चों को नहीं आती कहानी के बग़ैर
एक दिन मिर्ज़ा साहब और मैं बरामदे में साथ साथ कुर्सियाँ डाले चुप-चाप बैठे थे। जब दोस्ती बहुत पुरानी हो जाए तो गुफ़्तुगू की चंदाँ ज़रूरत बाक़ी नहीं रहती और दोस्त एक दूसरे की ख़ामोशी से लुत्फ़-अंदोज़ हो सकते हैं। यही हालत हमारी थी। हम दोनों अपने-अपने ख़्यालात में ग़र्क़ थे। मिर्ज़ा साहब तो ख़ुदा जाने क्या सोच रहे थे। लेकिन मैं ज़माने की ना-साज़गारी पर ग़ौर क...
छू रहा है चेहरे कोइक निवाला हाथी का
हाथी देखे भारी-भरकमउन का चलना कम कम थम थम
जो इस हवा में यारो दौलत में कुछ बढ़े हैंहै उन के सर पे छतरी हाथी पे वो चढ़े हैं
शे’र की अमली तन्क़ीद करते वक़्त मशरिक़ी तन्क़ीद ने जो इस्तिलाहें वज़ा कीं उनमें बड़ा ऐब ये रहा कि वो नस्र और नज़्म दोनों पर मुंतबिक़ हो सकती हैं। इब्न ख़ुलदून का ये क़ौल कि नस्र हो या नज़्म, अलफ़ाज़ ही सब कुछ होते हैं, ख़्याल अलफ़ाज़ का पाबंद होता है, हाली जिसका मज़ाक़ उड़ाते हैं और जो आज मग़रिबी तन्क़ीद में हाथों-हाथ लिया जा रहा है, और जिसे मला रमे और डेगा के ...
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
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