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शेर
इक इंतिज़ार में क़ाएम है इस चराग़ की लौ
इक एहतिमाम में कमरे का दर खुला हुआ है
अब्दुर्राहमान वासिफ़
शेर
ग़ैर से मिलना तुम्हारा सुन के गो हम चुप रहे
पर सुना होगा कि तुम को इक जहाँ ने क्या कहा
क़ाएम चाँदपुरी
शेर
मैं किन आँखों से ये देखूँ कि साया साथ हो तेरे
मुझे चलने दे आगे या टुक उस को पेशतर ले जा