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ग़ज़ल
वो नए गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
तुम्हारा रूठना तम्हीद थी अफ़्साना-ए-ग़म की
ज़माना हो गया हम से मिज़ाज-ए-दिल नहीं मिलता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
रफ़्ता रफ़्ता रख़्ना रख़्ना हो गई मिट्टी की गेंद
अब ख़लीजों के सिवा क्या रह गया नक़्शे के बीच
अनवर मसूद
ग़ज़ल
किसी से दिल ही दिल में रूठना फिर ख़ुद ही मन जाना
गुमाँ इस पर कि शायद उस को भी एहसास होता है