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ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
ख़राब सदियों की बे-ख़्वाबियाँ थीं आँखों में
अब इन बे-अंत ख़लाओं में ख़्वाब क्या देते
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
हम से पूछो इज़्ज़त वालों की इज़्ज़त का हाल कभी
हम ने भी इक शहर में रह कर थोड़ा नाम कमाया है
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
कोहकन ओ मजनूँ की ख़ातिर दश्त-ओ-कोह में हम न गए
इश्क़ में हम को 'मीर' निहायत पास-ए-इज़्ज़त-दाराँ है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
मुझे गुफ़्तुगू से बढ़ कर ग़म-ए-इज़्न-ए-गुफ़्तुगू है
वही बात पूछते हैं जो न कह सकूँ दोबारा
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
अल्लाह जिसे चाहे उसे मिलती है 'मुज़फ़्फ़र'
इज़्ज़त को दुकानों से ख़रीदा नहीं जाता