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ग़ज़ल
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मोहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
क्या जाने क्या रुत बदले हालात का कोई ठीक नहीं
अब के सफ़र में तुम भी हमारे साथ चलो तो बेहतर है
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
लोग कहते हैं तहज़ीब 'हाफ़ी' उसे छोड़ कर ठीक है
हिज्र इतना ही आसान होता तो तौंसा नहीं छोड़ता
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
वस्ल का मौसम हो तो ये सर्दियाँ ही ठीक हैं
हिज्र में क़ुर्बत की ये परछाइयाँ ही ठीक हैं