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ग़ज़ल
लम्हों में ज़िंदगी का सफ़र यूँ गुज़र गया
साए में जैसे कोई मुसाफ़िर ठहर गया
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
ग़ज़ल
ख़िज़ाँ-दीदा गुलिस्ताँ का नज़ारा कर लिया मैं ने
न पा कर फूल काँटों ही से दामन भर लिया मैं ने
कृष्ण गोपाल मग़मूम
ग़ज़ल
कैसा होगा देस पिया का कैसा पिया का गाँव रे
कैसी होगी धूप वहाँ की कैसी वहाँ की छाँव रे